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एकभारतीयबनतें है
उठकर
अपनीआँखे मलतें है,
आओ,
से बढ़कर,
भारतीय बनतें है,
देश में होंगे,
देश में होंगे,
विवेचनायें,
भारतीयता को ही,
अपना धर्म समझते है|
उठकर…
किसी सैनिक के घर चलतें है,
उसके बहते ख़ून पर,
बर्फ़ का एक टुकड़ा बनतें है,
इतनी ख़ुशी दे, दे उसे,
इतना वज़न नहीं हमारा,
पर हम सब उसका,
एक त्योहार तो सज़ा सकतें है,
आओ,
धर्म जात से बढ़कर,
एक भारतीय बनते है|
उठकर….
एक किसान के घर चलतें है,
उसकी फ़सल का एक छोटा सा,
बीज बनते है,
उसके हल खिच ले,
इतनी औक़ात नहीं हमारी,
उसकी जान हिफ़ाज़त रहे,
है,
आओ,
धर्म जात से बढ़कर,
एक भारतीय बनते है|
उठकर…
है,
इस तकलीफ़ में
उसकी हिम्मत बनते है,
इतने झुझारू हो हम,
ये ताक़त हममें नहीं,
बस उसके चेहरे पे एक मुस्कान हो,
इतनी पहल तो हम कर सकते है,
आओ,
धर्म जात से बढ़कर,
एक भारतीय बनते है|
उठकर
है,
उसके ज़िंदगी के सफ़ेद रंग पर,
कुछ ख़ुशियों के रंग भिखेरते है,
इतनी सामाजिक अवहेलना झेल ले,
नहीं,
समानता मिले,
हमकरसकतें है,
आओ,
धर्म जात से बढ़कर,
एक भारतीय बनते है|
उठकर…
किसी निर्धन की चौखट पर चलतें है,
उसके भूखे पेट की,
दो वक़्त की रोटी बनते है,
इतनी पीड़ा में भी मुस्कुरा ले,
इतना हृदय सख़्त नहीं हमारा,
कम से कम उसके घर के बच्चों की,
शिक्षा तो पूरी करवाँ ही सकतें है,
आओ,
धर्म जात से बढ़कर,
एक भारतीय बनते है|
चलों उठकर..
अपनी आँखे मलते है..
आओ,
धर्म जात से बढ़कर,
भारतीय बनते है|
यतींद्र
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