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एक समीक्षा- मेरा देश निकाला- परम पावन दलाई लामा

छोटी छोटी सी बाते
छोटी छोटी सी बाते
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एक समीक्षा

मेरा देश निकाला- परम पावन दलाई लामा

 

एक पाठक  होना  भी एक जिम्मेदारी होती है क्युकी हम सिर्फ किताबों को पढ़ते नहीं अपितु उसको जिते है| उन चरित्रों, पात्रो, घटनाओ को, महसूस करते है, और फिर बनती है उस किताब की समीक्षा | एक समीक्षा करना  बहुत व्यवस्थित और साहसिक कार्य भी है क्युकी इसमे सिर्फ सत्य का ही पालन करना होता है और ये एक लेखक की कार्य शैली को भी दर्शाता है|

यतीन्द्र मंजू पाण्डेय आप सभी को प्रस्तुत करता हूँ एक समीक्षा

(मेरा देश निकाला- परम पावनदलाई लामा  की )

पुस्तक की जानकारी :

लेख़क: तेनजिन ग्यात्सो (स्वयं दलाई लामा )

भाषा : अंग्रेजी

प्रकार :आत्मकथा

पात्र: खुद दलाई लामा

बुनियाद: तिब्बत की पृष्ठभूमि और भारत धर्मशाला

अनुवादक: महेंद्र कुलश्रेष्ठ (हिंदी )

संपादन :राजपाल एंड संस डेल्ही

पन्नो की संख्या : 271

मूल्य : 190/-   

ये पुस्तक एक आत्मकथा है जो स्वयं  तेनजिन ग्यात्सो परम पावन और बुद्ध के अवतार दलाई लामा ने लिखी है | ये तिब्बत और चीन की पृष्ठभूमि पर, चीन के द्वारा की गयी अत्याचारों की कहानी है| जिसे स्वयं दलाई लामा ने प्रस्तुत किया है |

किस तरह से एक २ वर्ष के बालक को दलाई लामा जैसे सर्वोच्च पद से नवाजा जाता है  और एक नन्ही सी उम्र में जब हम सब खिलोनो से खेलते है उसे देश के सबसे बड़े पद पर स्थापित कर दिया जाता है | ये किताब संघर्षो की गाथा है जो वाकई घटी है और अब तक चल रही है |

क्यू पढ़े :

एक संघर्ष को समझने के लिए और आज जिस तरह भारत में चीन को लेकर जमीनी विवाद चल रहा है उसे जानने के लिए| किस तरह चीन खुद को बढ़ना चाहता है इसके लिए चाहे उसे किसी का दमन ही क्यों न करना पड़े वो पीछे नहीं हटता तिब्बत इसका उदारहण है |

इस लिए भी, की वो लोग जो भारत में खुल कर कुछ भी बोलते है वो ये समझ जायेंगे की भारत ही स्वर्ग है बाकि सब नरक जहा बोलने की आजादी भी नहीं, अपनी आवाज उठाने वालो का दमन कर दिया जाता है पर हम लोग इंडिया इस अ डेमोक्रेटिक कंट्री का चोला ओढ़कर कुछ भी बोल जाते है |

मेरी पसंद:

पुस्तक में कुछ ऐसे मार्मिक दृश्यों का चित्रण किया गया है जिससे मुझे भारत के स्वतंत्रता सेनानीयों की याद आ गयी, उनका इतिहास और अपने देश को स्वतंत्र कराने के लिए जो सितम उन्होंने झेले थे| आँखों में आशु खुद ब खुद आ गए जब एक दृश्य मैंने पढ़ा-(तिब्बत में चीन के खिलाफ बोलने वाले एक शख्स को नंगा करके कई दिनों तक मारा गया खाने को नहीं दिया गया एक बार तो उसने खुद के मल से निकले कीड़े को ही धोकर खा लिया)

कुछ बाते चिंतनीय लगी जैसे :

 बोधि का अर्थ है जीवन की वास्तविक प्रकृति का ज्ञान होना है |

स्थिति खुजाते रहने से कई बेहतर है|

प्रतेक धर्म में हानि पहुचाने की  छमता होती है वे लोगो का शोषण भी करते है पर ये कमी उन धर्मो की नहीं होती उन व्यक्ति की होती है जो उसका पालन करते है |

क्या पसंद नहीं आया ?

वैसे तो इस पुस्तक में कुछ  पसंद न आये ऐसा संभव नहीं परन्तु फिर भी कुछ ऐसी बाते जो भारत की राजनीत  से जुडी थी उसे शायद कम बताया गया है या फिर खुल कर उस पर नहीं लिखा गया है शायद ये भी राजनितिक बातो से प्रभावित हो |

शांति नोबेल पुरष्कार से सम्मानित दलाई लामा की ये आत्मकथा एक सार्थक लेखनी है और सभी को जरुर पढनी चाहिए| खाश तौर पर भारत के सभी लोगो को क्युकी इससे आप भारत के राजनैतिक परिदृश्यों को भी समझ पाएंगे साथ ही साथ चीन के वास्तविक चेहरे को भी देख पाएंगे हमारा देश तो आजाद हो गया पर तिब्बत नहीं | ये लड़ाई आजादी की ही है, शांति की है, और सद्भभाव की है |

अंत में इस पुस्तक को मैं 5 में से दूंगा 3 .5 स्टार और सभी को पढने की सलाह दूंगा|

 

आपको ये समीक्षा कैसी लगी आप अपनी प्रतिक्रिया मुझे यहाँ साथ ही निचे लिखी मेरी मेल पर भेज सकते है और अगर आप चाहते है की मैं आपकी पुस्तक भी पढू साथ ही उसकी समीक्षा करू तो जानकारी और अपना लिंक मुझे जरुर भेजे |

एक लेखक कम पाठक

यतीन्द्र मंजू पाण्डेय

pgdmcmd@yahoo.in

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