Menu
blogid : 14266 postid : 1231937

जब रिश्तें

छोटी छोटी सी बाते
छोटी छोटी सी बाते
  • 49 Posts
  • 191 Comments

जब रिश्तें


जब रिश्तें…

विछेदित हो रहें हों,

निष्काम पड़ गये हों,

स्थिल हो गए हो,

सिर्फ ज्वलंत बातों का उत्पादन कर रहे हो…

जब रिस्ते….

सड़ कर बास,

..गंध मार रहे हों

अवनति के मार्ग पर हों,

द्वेष,

शक,

नकारात्मकता  बढ़ा रहे हों,

जब रिश्ते….

ऊर्जा विहीन हों,

कंठ को जला रहे हों,

अश्रु बहा रहे हों,

शारीरिक प्रताड़ना,

अवेहलना,

वक्त को विनिष्ट,

उम्र को असमय बढ़ा रहे हों,

मातम की सेह सजा रहे हों,

रोज जलती चिता पर बैठा रहे हों,

मस्तक को चिन्हित,

स्वेद से भिंगो रहे हों,

जब रिश्ते….

काली रातों को भयानक

दिल के अज़ाब को बढ़ा रहें हों,

कार्य को विकेन्द्रित कर रहें हों,

ह्रदय गला,

गफलत बढ़ा रहे हों,

जज्बातों को मलिन कर रहे हों,

जब रिश्ते…

एक नष्ट पथ की तरफ अग्रसर हों,

………..

तब प्रयाश रत हों,

उठें एक निर्णय ले….

बात करे,

और खुद  को,

उस रिश्ते से पृथक करें,

एक  रिश्ते का अंत..

न जानें कितने नकरात्मकता का अंत है|

ऐसे रिश्तो से बोझिल न हो,

डरे नहीं,

स्वयं की विशिष्टता  का बोध करें,

और ऐसे रिश्ते के दरवाजों को बंद करें,

यहीं वैचारिकता है,

यही आज के सच की बुनियाद…

यही जीवन का अध्याय है,

आगे बढ़ते जाना,

वक्त बिताना नहीं,

वक्त को जीना…

यहीं वैचारिकता है,

यही आज के सच की बुनियाद |

“काम बहुत है,

करना बहुत है,

न ठहरो अब दो पल भी किसी के लिए….

वक्त रुकता नहीं,

कुछ कहता नहीं,

हमारी अधूरी ख्वाहिसों के लिए”

यतीन्द्र

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply