- 49 Posts
- 191 Comments
मेरी दोस्ती मेरा प्यार
ज़िंदगी के इतने वर्षों में कई लोग मिलें कुछ प्रकृतिक रिश्ते थे,कुछ सामाजिक, और कुछ पेशे वाले, पर कुछ रिश्तें ऐसे मिलें जो दिल में कहीं रह गए
वो थे,
दोस्ती के|
शायद मैं या किसी का भी व्यक्तित्व इस शब्द के बिना अधूरा है|
आज एक प्रयास उन सभी मित्रों को सम्मान देने का, जो मेरे जीवन में आए मेरे दोस्त बने|
हो सकता मेरी वजह से या शायद उनकी वजह से या फिर किसी गलतफैमियों की वजह से कई साथ ना हो, पर उन सब को ये बताना चाहता हूँ की मैं उन सभी को आज भी बेहद सम्मान देता हूँ और उनसे सबसे बेहद प्रेम करता हूँ ।
कुछ पंक्तिया एक ख़ूबसूरत रिश्तों के लिये जिसे मैंने ज़िंदगी के हर पड़ाव पर जिया है|
मैंने ज़िंदगी के हर पल में एक रिश्ता जिया था|
कुछ रेडीमेड थे,
तो कुछ मैंने अपने हाथो से सिया था,
कुछ रिश्ते क़ुदरती थे,
पर कुछ मैंने संजोये थे,
हाँ…
वो दोस्ती का रिश्ता था,
दोस्ती का|
मुझें नहीं पता था,
तुम कौन थे…
कभी सच्चे साथी बने,
कभी मेरे मार्ग दर्शक,
एक तुम ही थे,
जो मेरे रग-रग से वाक़िफ़ थे,
मेरी नस-नस पहचानते थे,
तुम हर क़दम मेरे साथ थे,
अलग-अलग रूप लिए,
अलग-अलग जगहों पर,
बचपन की हर मस्ती,
हमने साथ में की….
हर खेल साथ खेला,
साथ ही स्कूल गए,
साथ ही स्लेट पकड़ा,
साथ ही किताबों को पढ़ा,
साथ ही लोगों को,
और बहुत सी बातों को समझा,
कही ना कही मुझे बचपन से…
बड़ा करने में, तुम्हारा ही तो सहयोग था|
जवानी की दहलीज़ साथ देखी,
ज़िंदगी के हर छोटे-बड़े उतार चढ़ाव में,
तुम ही मेरे साथ खड़े थे|
कितनी ऐसी परेशनियाँ,
जो हम मम्मी-पापा को नहीं कह पाते,
तुमसे बेहिचक कह दियाकरते थे|
एक तुम ही थे जो बिना शर्त,
मुझे समझ जातें थे|
तुम्हारा मज़ाक़ मेरी प्रेरणा थी,
तुम्हारा धिक्कार मेरा प्रोत्साहन,
तुमने कभी ना मेरा जात पूछा,
ना धर्म,
ना ही मेरे गोत्र का संज्ञान लिया,
तुम थे ही एकता के पुजारी,
जिसने कभी मेरी ख़ूबसूरती नहीं देखी,
मेरा वर्ग, मेरी हैसियत नहीं देखी,
मेरे ग़लत क़दम में,
मुझे रोका….
सही क़दम पर सबसे लड़ गए|
तुम दोस्त थे, जो मेरे|
ज़िंदगी की समवैधानिकता तुमसे सिखी,
इन्सान की परख तुमसे सिखी,
मुस्कुराना, हँसना
अच्छा इंसान बनना तुमसे सिखा…
प्यार करना तुमसे सिखा,
साथ निभाना तुमसे सिखा,
परिवार अगर पहली पाठशाला थी,
तो तुम दूसरी और तीसरीबन गए |
तुम दोस्त थे, जो मेरे|
हाँ….
ज़िंदगी की जद्दोजहद में,
कुछ तुम हमें छोड़ गए,
कुछ हम तुम्हें,
कुछ संवाद कम हो गए,
कुछ प्रतिद्वंद्वी बन गए,
कुछ जगह बदल जाने से छूट गये,
कुछ वैचारिक मतभेदों में रह गए,
कुछ अहम् में…
ज़िंदगी की रफ़्तार में,
पीछे छूट गये|
पर दोस्ती जैसे-जैसे तुम घटते गए,
वैसे वैसे दोस्ती तुम बढ़ते भी गए|
ऐ दोस्ती…………
जो जीवन खुशनुमा है तुमसे,
उसे अकेला ना कर जाना,
किसी का दिल गर मुझसे दुखा है,
तो उसे मेरी ख़ुशी का हिस्सा बना जाना |
अंत में…….
दोस्ती तू गुलज़ार करती है,
इस जहाँ को इस क़दर,
की रिश्तों का कोई प्यासा,
नहीं रह जाता|
कितना भी बरस ले,
गरज ले ये बादल,
दोस्ती से ऊँचा नहीं हो पाता|
बस सबसे प्यार से रहिए,
माफ़ करिए जिनसे ग़लती हुई,
और माफ़ी माँग लीजिए अगर आप से हुई।
ज़िंदगी है बेहद छोटी सी,
रिश्तों को सम्मान दीजिए।
यतींद्र
Read Comments