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एक समीक्षा “बस तुम्हारे लिए” – मीनाक्षी सिंह

छोटी छोटी सी बाते
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एक समीक्षा

सिंह

सिंह जी की पुस्तक (बस तुम्हारे लिए) एक पुस्तक नहीं एक संजीदगी है| मै व्यक्तिगत तौर पर एक पाठक ही हूँ और हर पुस्तक को न केवल पढता हूँ बल्कि उसके हर किरदार हर पंक्ति हर शब्द को जीने की कोशिश करता हूँ इसके पीछे एक सार्थक वजह भी है|

एक कहानी पढना उसके दृश्यों को समझना शायद उतना कठिन नहीं, जितना कठिन एक कविता या काव्य को पढना है, क्युकी एक कविता एक लेखक किस परिस्थिति में और किस संवेदना के साथ लिखता है ये जान पाना बेहद कठिन है| जब उसके विचार के साथ एक पाठक के विचार का समागम होता है तभी उसकी रचना सार्थक लगती है| एक पाठक होना भी  कठिन है और उसका ये कर्तव्य है की वो लेखक के उस भाव को पकड़ सके, या कम से कम उससे समीपता तो बना ही सके |

मैंने ऐसा ही एक प्रयाश किया और बहुत हद्द तक सफल हुआ, पर कुछ रचनाओ में असफल भी रहा| इसका अर्थ ये नहीं की रचनाये अच्छी नहीं है इसका अर्थ बस इतना है की मैं उस लेखक की सोच से समागम  नहीं कर पाया, साथ ही मैं ये भी कहना चाहूँगा की कोई भी लेखक और उसकी रचना कभी भी बुरी नहीं होती बस हम उसके भाव नहीं समझ पाते इसलिए वो हमें पसंद नहीं आती, हमारे समीप नहीं हो पाती |

मैं एक पुस्तक की समीक्षा कर रहा हूँ तो असत्य को माध्यम नहीं बनाऊंगा  जो सच मैंने महसूस किया है वही लिखूंगा| इस किताब या किसी भी किताब की समीक्षा करके या नकारात्मक समीक्षा करके में प्रसिद्धि हासिल नहीं करना चाहता| 

पुस्तक की जानकारी :

सिंह

भाषा : हिंदी

प्रकार :कविता संग्रह

बुनियाद: पांच भागो में विभक्त अलग-अलग जीवन के अहसासों के साथ/ महिलाओं की कुछ छोटे छोटे अहसासों की गुत्थी भी बोल सकते है|

संपादन :अन्जुमन प्रकाशन इलाहाबाद

पन्नो की संख्या : 120

कविताओं की संख्या :68

मूल्य : Rs.120/-

क्यू पढ़े :

एक संजीदगी जीने के लिए, एक मोहब्बत समझने के लिए, और शायद उसके लिए जिससे आप बेहद प्रेम करते है| “बस तुम्हारे लिए” अहसासों की कुंजी है| बस एक पाठक को अपने कर्तव्य का निर्वाह सही ढंग से करना होगा लेखक के भाव को समझना और जीना होगा|

जी को इस बात से अवगत कराया था, और उन्होंने मुझसे समीक्षा की मांग की पर मैं हर बार उनके पूछने पर  चुप रहा क्युकी मैं बिना पढ़े सिर्फ फोटो खीच कर उन्हें या संपादक को खुश नहीं करना चाहता था| मैं चाहता था की जब भी मैं लिखू सच लिखू जो मैंने अपने अनुभवों से जाना है| आप में से कई लोग ये भी पूछ सकते है की आप किस बुनियाद से किसी पुस्तक की समीक्षा कर रहे है? तो मैं बस इतना कहूँगा की जब मैंने होश सम्हला तब ही मेरी माँ ने मुझे पंचतंत्र की पुस्तक थमाई थी और आज २९ वर्षो में लगातार पुस्तकों को पढ़ते रहना मेरी आदत में शुमार हो गया |

इसलिए अपने उसी अनुभव से में ये पुस्तक की समीक्षा कर रहा हूँ|

 

मेरी पसंद:

इस पुस्तक में पूरी 68 कविताये है|मेरी सबसे पसंदीता कविता है शीर्षक कविता (बस तुम्हारे लिए) इनके पंक्तियों को मैंने अपने जज्बातों करीब  महसूस किया साथ ही लेखक के अहसासों को समझने में भी सफल रहा| आप कह सकते है की इस कविता को मैंने जी लिया था| फिर (यथार्थ धरातल) से, “झकझोरती  जिन्दगी, फौजी दुल्हन, औरत और पेड़,और  मालनी वो बेफफा औरत” मुझे काफी पसंद आयी |

(रीते रीते से फल) भाग से, मुझे “एक कविता का जन्म” मेरे दिल के करीब आ गयी|

साथ ही भाग पांच यानि  (सकारात्मक बढ़ते कदम) से “बोलो न माँ” बेहतरीन कविता लगी|

बाकि सभी कविताये भी अच्छी है पर ये ऊपर लिखी और उनकी पंक्तिया मुझे बेहद पसंद आयी |

कुछ पंक्ति जो मुझे अच्छी लगी :

सडको में जाते उन लोगो में झाककर

की उनके अन्दर कितनी विरानगी  है ?

फीर भी दौड़ रहे है न वो लोग|

क्या पसंद नहीं आया :

कुछ पसंद न आये ऐसा कहना तो सही नहीं क्युकी मैंने पहले ही कहा की कुछ रचनाओ में मैं लेखक के भाव तक नहीं पहुच पाया|

भाग एक की कुछ कविताये मुझे अपूर्ण सी लगी| इसका तात्पर्य आप ऐसे लगा सकते है जैसे लेखक के मन में और भी कुछ था परन्तु किसी कारण वश वो कविता को बिच में ही छोड़ दिया हो | मेरा ये मानना गलत भी हो सकता है परंतू मुझे ऐसी अनुभूति हुई इसलिए मैं भाग एक से ज्यादा समीपता नहीं बना पाया |

अंत में संपादक और लेखक के लिए :

बनने का आनंद है ये किसी रोलर कोस्टर राइड से कम नहीं तमाम लेखक उनके तमाम विचार उनको समझना उनकी गलियों में सैर करना काफी रोमांचक होता है और तभी एक सफल रचना की आग जलती है |

अंजुमन प्रकाशन ने इस पुस्तक को उसी संजीदगी से प्रस्तुत भी किया है प्रथम पृष्ट से लेकर अंत तक छपाई बिलकुल साफ़ है कही भी पाठक को बाधा नहीं होगी | साथ ही पुस्तक के कवर पृष्ट बेहतरीन तरीके से छापे गए है,जो एक जज्बातों को बयाँ करने के लिए काफी है |

जी की (बस तुम्हारे लिए) को मैं 5 में से 3 स्टार दूंगा और साथ एक संजीदगी जीने के लिए सभी को इस पुस्तक को पढने का आग्रह करूँगा, और साथ ही लेखक से कुछ और बेहतरीन लेखनी की फरमाइश करूँगा, जिससे हमें कुछ और बेहतरीन पढने को मिले|

 

 

 

 

आपको ये समीक्षा कैसी लगी आप अपनी प्रतिक्रिया मुझे यहाँ साथ ही निचे लिखी मेरी मेल पर भेज सकते है और अगर आप चाहते है की मैं आपकी पुस्तक भी पढू साथ ही उसकी समीक्षा करू तो जानकारी और अपना लिंक मुझे जरुर भेजे |

एक लेखक कम पाठक

यतीन्द्र मंजू पाण्डेय

pgdmcmd@yahoo.in

 

 

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