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पताहै,
अक्सरतुमयादआजातेंहों।
सौंधी–सौंधीख़ुशबूवोंमें,
बादलोंकेगुछोंमें,
हरफूलकीनरमीमें,
पहलीबारिशकीबूँदोंमें,
सरसारतीहवाओंमें,
स्वतंत्रउड़तेपंछियोंकोदेखकर…
पताहै,
अक्सरतुमयादआजातेंहों।
टिमटिमातेतारोंमें,
नवरंगनज़ारोंमें,
खिलखिलातीनदियोंमें,
पर्वतकीऊँचीचोटियाँमें,
रातकीनिखरीचाँदनीमें,
रंगबिरेंगेफ़व्वारोंकोदेखकर…
पताहै,
अक्सरतुमयादआजातेंहों|
किसीसोचकेगलियारेमें,
उर्दूकेकठिनअल्फ़सोमें,
अल्लाहकीआयनमें,
ईश्वरकीइबादतमें,
रागमल्हारमें,
चिड़ियोंकीप्रेमप्रस्तुतिदेखकर…
पताहै,
अक्सरतुमयादआजातेंहों|
पुरानीकिताबोंकीसिलवटोमें,
औरउसमेंमुरझाएमोरकीपंखुड़ीयोंमें,
वोडायरीमेंलिखीतुम्हारीछोटीछोटीग़ज़लोंमें,
तुम्हारेटेढ़ेमेड़ेंचित्रकारियोंमें,
तुम्हारेहाँथोंसेलगायेंपौधोंमें,
मेरीपर्शमेंरखीतुम्हारीस्टैम्पसाइज़फ़ोटोकोदेखकर…
पताहै,
अक्सरतुमयादआजातेंहों।
अंतमेंएकप्रश्नछोड़ेजारहाहूँतुम्हारेलिये……
इतनाफ़ायक़नहींथामैं,
इतनाफ़ाज़िलभीनहीं,
मैंतोपाकिजथाअपनेविचारोंसे,
फिरनासाफ़क्यूँहुआतुम्हारेलिए ?
नासाफ़क्यूँ ?
यतींद्र
फ़ायक़ –महान
फ़ाज़िल– निपुण
नासाफ़–अपवित्र
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