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जातिवादी मानसिकता की प्रताड़ना से तंग आकर होनहार आदिवासी छात्रा डॉ पायल तांडवी ने आत्महत्या कर ली। भारतीय संविधान हमें सुरक्षा प्रदान करता है उसके बावजूद क्या कारण है कि हमारे समाज मे ऐसी घटनाये होती रहती है क्यों हो रहा है यह सब? कब तक होगा यह सब? इन्हीं सब बातों पर विचार करने की आवयश्कता है. क्यों इकीसवीं शताब्दी मे भी आज का भारत दुनिया क़े बराबर खुद को खड़ा नहीं कर पा रहा है आये दिन ऐसी घटनाये होती रहती है जो समाज को झकझोर कर रख देतीं है,
मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता
एक बात जो सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, वह है मूल्य आधारित शिक्षा की. मैं देख रहा हूँ कि औपचारिक शिक्षा तो छात्रों को मिल जाती है पर नैतिक और सामाजिक शिक्षा नहीं मिल पा रही है.आरक्षण और सांप्रदायिकता जैसे मुद्दों को वैज्ञानिक तरीके से देखने की ज़रूरत होती है पर वो नहीं हो पा रहा है. इन मुद्दों पर होने वाली प्रतिक्रिया अक्सर विपरीत होती है.
प्रत्येक विद्यार्थी चाहे किसी भी विषय का हो, उसे यह मालूम होना चाहिए कि हमारे समाज की मूलभूत समस्याएँ, ग़रीबी, लिंग आधारित विभेद, जाति विभेद, शोषण और बहिष्कार जैसी समस्याओं का उन्हें एहसास होना चाहिए.अगर सामाजिक व्यवस्था की इन सच्चाइयों का अहसास हम उन्हें करा देते हैं तो इन समस्याओं की ओर देखने का या उन्हें नज़रअंदाज़ करने के नजरिए में बदलाव आएगा.
वैचारिक मतभेद हो सकते हैं पर इनपर वे सकारात्मक रूप से सोच सकेंगे समस्या तो यह है कि आज के शिक्षितों में से कई लोगों को समाज और देश की समस्याओं की समझ ही नहीं है.हम देखते हैं कि आज भी समाज के शिक्षित वर्ग में समाज और देश की समस्याओं को समझने की सकारात्मक दृष्टि का अभाव है जिसके कारण ही आज भी डॉ पायल तांडवी की आत्महत्या जैसी घटनाये हो रही है!
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