- 40 Posts
- 18 Comments
राजनैतिक दलों ने अपने घोषणा-पत्र में कई महत्वाकांक्षी योजनाओं का जिक्र किया है, जिनके लिए बजट में धन की व्यवस्था करना एक चुनौती होगी. केंद्र सरकार एक वर्ष में लगभग 15 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है, जबकि करों आदि से सरकार को केवल 9.4 लाख करोड़ रुपये प्राप्त होता है. यदि सरकार की आमदनी को 100 रुपये मानें तो सरकार का खर्च 160 रुपये होता है, जिसके लिए वह हर साल 60 रुपये बाज़ार से उधार लेती है. बाज़ार से लिए उधार पर सरकार हर वर्ष केवल ब्याज दे पाती है.
सरकार के कुल खर्च को यदि 100 रुपये मानें तो केवल 33 रुपये योजना खर्च (प्लान) के लिए होता है. बाकी 67 रुपये अनियोजित खर्चों जैसे वेतन, पुरानी योजनाओं के रख-रखाव आदि के लिए होते हैं.
योजनाओं को लागू करने के लिए अनियोजित खर्चों को कम करना नयी सरकार के लिए एक चुनौती होगी. इस खर्चे के मुख्य तीन मद ब्याज, अनुदान तथा रक्षा-तंत्र हैं. वित्त वर्ष 2013-14 के अंत तक सरकार की कुल देन-दारी लगभग 56 लाख करोड़ रुपये थी, जो पिछले कई वर्षों से 5-6 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष की दर से बढ़ती जा रही है. इस देन-दारी की वजह से अनियोजित खर्च का लगभग 33 प्रतिशत केवल ब्याज चुकाने पर लग जाता है. कीमतों को स्थिर रखने के लिए सरकार खाद्य पदार्थों, उर्वरक, तथा पेट्रोलियम पर अनुदान देती है. नयी सरकार यदि रक्षा मंत्रालय के खर्चे को कम करती है तो उसे संसद में भीषण विरोध का सामना करना पडेगा. उपरोक्त तीनों मदों को जोड़ा जाय तो सरकार के पास अनियोजित खर्च के मद में केवल 27 प्रतिशत बचता है, जिसमें से उसे सरकारी कर्मचारियों को वेतन देना होता है. महंगाई भत्ते आदि के इसमें लगातार वृद्धि होती रहती है. फिर नए वेतन आयोग का भी गठन किया जा चुका है, जिसकी विभीषिका भी अगली सरकार ही झेलेगी.
प्रायः अनियोजित खर्चा अनुमान से अधिक हो जाता है. इसके अलावा सरकार कर-संग्रहण भी अनुमान से कम कर पाती है. बाज़ार से उधार के लिए निकाले गए बांड्स भी पूरी तरह निवेशित नहीं हो पाते. इन तीनों कारणों से योजना खर्च को और कम करना पड़ता है. वित्त-वर्ष 2012-13 में योजना खर्च में लगभग 21 प्रतिशत की कमी करनी पडी.
वित्त वर्ष 2014-15 के लिए अंतरिम बजट पेश करते हुए केन्द्रीय वित्त-मंत्री की कुछ घोषणाएं इस प्रकार से थीं:-
प्रतिवर्ष सरकार करों से लगभग 15 प्रतिशत अधिक आमदनी करती है. फिर राज्य सरकारें अलग से अपने कर लगाती हैं. इस सबसे महंगाई बढ़ती है, जो योजनाओं को भी महंगा कर देती हैं, जबकि योजनाओं के लिए प्रावधान में कोई बढ़ोतरी नहीं होती. देश के तीव्र विकास के लिए नयी सरकार को कुछ नए तरीके से सोचना अवाश्यक होगा.
Read Comments