हिंदी को व्यवहारिक बनाकर ही उसका सम्मान और दायरा बढ़ सकता है (क्या हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लाई जा सकती है?) contest
kahi ankahi
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हिंदी ! अधिकाँश भारतीयों की अपनी भाषा ! मातृ भाषा ! जितना भारत माँ से प्यार उतना ही मातृ भाषा से भी होना चाहिए था किन्तु ये अफ़सोस की बात ही कही जायेगी कि दिनों दिन न केवल मातृभूमि से प्यार में कमी आ रही है बल्कि मातृ भाषा से भी दूरी बनाने की होड़ लगी हुई है ! कुछ गलत भ्रांतियां हैं जो लगभग हर भारतीय के मन मष्तिष्क में घर करके बैठी हुई हैं ! हर किसी को ये लगने लगा है कि अंग्रज़ी माध्यम में पढ़कर और अंग्रेजी पढ़कर ही उनका पुत्र / पुत्री या वो स्वयं ऊँची ऊँची पोस्ट और पद प्राप्त कर सकते हैं ! जबकि मुझे लगता है कि आदमी के अन्दर अगर योग्यता , प्रतिभा और लगन है तो वो किसी भी माध्यम से पढ़ा हुआ हो , उसे अपने लक्ष्य को हासिल करने में कोई भी रुकावट नहीं आ सकती ! अंग्रेजी भी एक भाषा ही है और कुछ भी नहीं ! लेकिन न जाने क्यूँ सम्पूर्ण भारत का रुझान , और द्रष्टिकोण इस तरह का हो चला है कि जिसे बेहतर अंग्रेजी नहीं आती वो अपने मकसद और अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता ! अंग्रेजी अवश्य आनी चाहिए , क्यूंकि ये एक सार्वभौमिक सत्य है कि अंग्रेजी आज विश्व की भाषा बन रही है लेकिन क्या सिर्फ अंग्रेजी आने से ही सब कुछ संभव है ? अंग्रेजी एक अतिरिक्त योग्यता है , पहली नहीं ! लेकिन यहाँ भी मैं अपनी बात काटूँगा ! अंग्रेजी को पहली प्राथमिकता बनाया जा रहा है ! अगर कहीं कोई जगह निकलती है नौकरी के लिए तो स्पष्ट लिखा होता है कि अंग्रजी आनी चाहिए ! वहां फिर पेट की बात आ जाती है , जो सबसे जरुरी विषय है आम आदमी के लिए ! भले ही अंग्रेजी में वार्तालाप न करें लेकिन अंग्रेजी जरुरी जरुर बना दी जाती है !
ये राम की रहमत है रहीम की रामायण तुम जिसको कहते हो मासूम का पागलपन !!
मैं देखता हूँ अक्सर , बड़े बड़े नाम वाले स्कूलों में, सिर्फ अंग्रेजी को लेकर कितनी मोटी फीस ली जाती है, हालाँकि इस बात से इनकार नहीं कि उनका पढ़ाने का तरीका भिन्न और कुछ श्रेष्ठ भी होता है किन्तु मैं इस बात का समर्थन करता हूँ कि प्रतिभा किसी अवसर की मोहताज़ नहीं होती ! ये जरुरी नहीं कि एयर कंडीशन में पढने वाला बच्चा , बिना पंखे के स्कूल में पढने वाले बच्चे से ज्यादा होनहार होगा ! मैं इंजीनियरिंग अध्यापन में होते हुए ये महसूस करता हूँ कि ग्रामीण परिवेश से आया हुआ छात्र , शहरी छात्रों के मुकाबले सिर्फ अंग्रेजी में थोडा पिछड़ जाता है किन्तु उसकी मेहनत और लगन उसे इतना परिपक्व कर देती है कि जो बच्चा प्रथम वर्ष में अंग्रेजी बोलने में हिचकता था वो 4 साल के बाद उन शहरी बच्चों से कई गुणा उत्कृष्ट अंग्रेजी बोलता है ! इसमें उसकी सीखने और समझने की काबिलियत होती है ! इसीलिए फिर कहता हूँ कि अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है , अपने आपको व्यक्त करने की ! इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं ! ब्रज भाषा में एक कहावत है ” पैनों तौ पत्थर में ऊँ पैनों होंत ऐ !” और मुझे लगता है ये बिलकुल सत्य कथन है ! इसका मतलब बताता चलूँ ! इसका मतलब है – पैना ( sharp tool ) तो पत्थर में भी छेद कर सकता है !
कुछ बात इस तरह की भी चल निकली है कि हमारे फिल्म स्टार हिंदी में नहीं बोलते या खिलाड़ी हिंदी में बात नहीं करते ! ये उनकी मजबूरी भी हो सकती है और जरुरत भी ! लेकिन हम अपने आपको इनसे अलग करके देखें ! मैंने ऐसा कई बार देखा है जब कोई विदेशी हिंदुस्तान आता है तो वो अगर हमसे थैंक यू की हिंदी पूछता है तो हम उसे धन्यवाद बताते हैं किन्तु हम कितनी बार अपने दिन में धन्यवाद कहते हैं ? हम भी तो थैंक यू , थैंक यू करते हैं ! तो ये कौन सी बात हुई कि दुसरे को धन्यवाद और खुद थैंक यू ! कुछ पंक्तियाँ ली हैं नेट से :
शब्दों को जन्म ही नही दिया जीवन की आशा दी है हिंदी तुम ने हर एक भाव को कोई परिभाषा दी है
जननी हो कर नयी भाषाओं को रचा है तुम ने जो भी कह दिया हर शब्द सच्चा है
गंगाजल सी निर्मल हो ममता जैसी सरल हो तुम सभी देवताओं की अर्चनाओं का फल हो !!
अब आते हैं इस बात पर कि कैसे हिंदी को सम्मान और सही स्थान दिया जा सकता है या दिलाया जा सकता है ! सबसे पहली जरुरत है खुद में बदलाव लाने की ! जहां जरुरत न हो वहां अंग्रेजी का उपयोग न करा जाए बल्कि मातृभाषा बोलें ! अपने घर में हिंदी में बात करें , अपने बच्चों से हिंदी में बात करें लेकिन उन्हें ये भी कहें कि अंग्रेजी सीखना भी बहुत जरुरी है ! आप आज के समय में सिर्फ हिंदी से काम नहीं चला सकते ! कुछ लोगों को हिंदी के आज के स्वरुप से चिंता होने लगी है, स्वाभाविक है ! किन्तु अगर हिंदी को जन जन की भाषा बनाना है तो आपको इसके आधुनिक रूप को स्वीकार करना ही होगा ! अगर आज शहर में कोई योग को योगा कहता है या मन्त्र को मंत्रा कहता है तो कोई इस पर आपात्ति क्यूँ करे ? क्यूंकि उसे ऐसा कहना आसान और अच्छा लगता है लेकिन ये अंग्रेजी से तो नहीं आये , हैं तो मूलरूप से हिंदी के ही ! इसलिए मुझे लगता है हिंदी को व्यवहारिक होना ही होगा ! आप क्रिकेट को गोल गैन्दम डंडा मारम नहीं कह सकते ! आप सिगरेट को धूम्र दण्डिका नहीं कह सकते , आप आज के समय में रन लेने को दौड़ नहीं कह सकते ! आप ट्रेन को लौह पथ गामिनी नहीं कह सकते ! हिंदी न कहीं जा रही है और न ही ख़त्म हो रही है , बल्कि दिनों दिन बढ़ रही है ! वो माध्यम चाहे हमारा मडिया हो , हमारी फिल्में हों , हमारे गीत हों। या खेल हों या हमारा दुनिया भर में बढ़ता आर्थिक प्रभाव हो !
हमें ये समझना होगा कि हिंदी स्वतः ही बढती जायेगी अगर हमारी हैसियत विश्व बिरादरी में बढती है तो ! और ऐसा हो भी रहा है ! आजकल भारत में चिकित्सा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए बहुत से देशों से विद्यार्थी आ रहे हैं ! जो यहाँ आ रहे हैं चाहे पढने के लिए या नौकरी के लिए , वो हिंदी सीख रहे हैं क्यूंकि उन्हें मालुम है कि इसके बिना काम नहीं चल सकता हिंदुस्तान में ! मैं एक प्रसंग बताता हूँ ! मैं अपने पश्तो ( अफगानी ) भाषा का वायवा दे रहा था जामिया विश्व विधालय में ! कोई अफगान के राजदूत कार्यालय से आये थे , वो बेहतर हिंदी बोल रहे थे ! उनकी जरुरत थी क्यूंकि उन्हें पता है हिंदुस्तान में रहने और काम करने के लिए हिंदी आवश्यक है !
समग्र रूप से बस इतना कहना चाहूँगा कि हिंदी को तभी सम्मान मिल सकता है जब :
* हिंदी को व्यवहारिक बनाया जाए !
* भारत की आर्थिक हैसियत बढे !
* हम अपने घरों में और बच्चों के साथ हिंदी में बात करें !
* जब जरुरत न हो तब अंग्रेजी का उपयोग न करें !
* और सबसे बड़ी बात की हिंदी को दूसरे दर्जे की भाषा न समझें !
* हमेशा ये गर्व करेंकि हिंदी हमारी भाषा है और मुझे हिंदी भाषी होने पर गर्व है !
अंत में राष्ट्रकवि श्री मैथली शरण गुप्त जी की कविता के कुछ अंश प्रस्तुत कर आपसे विदा लेता हूँ !
जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
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