Menu
blogid : 5476 postid : 203

कोई कालिदास क्यों बनेगा ? ( भारतीय राजनीति में सुधार )

kahi ankahi
kahi ankahi
  • 66 Posts
  • 3690 Comments

काका हाथरसी ने अपनी एक कविता इस तरह से कही है :

एक अँधेरी रात को
बेटे ने पूछा बाप को
पापा ये डेमोक्रेसी क्या है ?
पापा बोले –
जहाँ जनता द्वारा , जनता की
होती ऐसी तैसी है |
वही तो बेटा डेमोक्रेसी है ||

हमारे संविधान निर्माताओं ने निश्चित रूप से जब संविधान लिखा होगा तो ये सोचा होगा कि वो भारत की जनता को संविधान के रूप में एक ऐसा मजबूत हथियार उपलब्ध करा रहे हैं जिससे गरीब से गरीब आदमी बिना किसी भय , और भेदभाव के इस ज़मीन पर रह सकता है , काम कर सकता है और अपने बच्चों के लए कहीं भी रोज़गार कर सकता है ! उन्हें शायद ये बिलकुल भी अंदेशा नहीं रहा होगा कि उनके द्वारा किये गए इन पुण्य कर्मों का ज़नाजा आज़ादी के 60 -65 वर्षों में ही उनके अपने लोग ही निकाल देंगे ! वोट के जिस हथियार को हर भारत वासी अपना मौलिक अधिकार समझ कर खुश होता है और ये दंभ करता है कि उसे भी सरकार में अपनी हिस्सेदारी दिखाने का मौका मिला है , लोग , ताकतवर लोग उसके इस हथियार को ही ” हाइजेक ” करने के प्रयास में हमेशा रहे हैं !

श्री अब्राहम लिंकन के शब्द दोहरा रहा हूँ जिसमें वो लोकतंत्र को एक ऐसी शाषण व्यवस्था बताते हैं जिसमें समाज के हर तबके को अपने अनुसार अपने बीच से बेहतर लोगों को चुनने की आज़ादी दी जाती है ! उनके ही शब्दों में :

लोकतंत्र मतलब
«Government of the people, by the people, for the people»

इस बात में कोई शक नहीं कि लोकतंत्र से बेहतर शाषण व्यवस्था और कोई हो ही नहीं सकती ! जहाँ इस तरह की व्यवस्था नहीं है वहाँ के लोग अपने मुल्क में लोकतंत्र को लागू करवाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और कहीं कहीं उन्हें इस महान कार्य में सफलता भी मिल रही है ! लेकिन इस काम को करने और राजशाही को धता बताकर लोकतंत्र लागू कराने की कीमत्त भी उन्हें जान माल से चुकानी पड़ रही है ! लेकिन फिर भी वो राजशाही से उकताकर लोकतंत्र को अपने यहाँ स्थापित करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे बेहतर शाषण प्रणाली और कोई नहीं है ! अगर आप खाड़ी देशों की तरफ या पुराने यूरोप को देखें तो वहाँ भी राजशाही से उकताकर लोगों ने विरोध किया और एक नई शाषण प्रणाली को जन्म दिया जिसे लोकतंत्र कहा गया ! लोकतंत्र की परिभाषा देखिये !

Democracy is by far the most challenging form of government – both for politicians and for the people. The term democracy comes from the Greek language and means “rule by the (simple) people”. The so-called “democracies” in classical antiquity (Athens and Rome) represent precursors of modern democracies. Like modern democracy, they were created as a reaction to a concentration and abuse of power by the rulers. Yet the theory of modern democracy was not formulated until the Age of Enlightment (17th/18th centuries), when philosophers defined the essential elements of democracy: separation of powers, basic civil rights / human rights, religious liberty and separation of church and state.

लोकतंत्र की अपनी खासियत होती है ! उसमें सामान्य आदमी को भी अपने देश का शाषक बनने का अवसर मिल सकता है ! अब्राहम लिंकन , श्री लाल बहादुर शास्त्री जी सहित ऐसे कई व्यक्ति हैं जिन्होंने समाज के निचले स्तर से उठकर अपने देश पर जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि के रूप में शाषण किया ! लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए उस देश को कुछ मानदंड अपनाने होते हैं ! जिन्हें यहाँ अंग्रेजी और हिंदी में लिख रहा हूँ !

Democracy – Key Elements

In order to deserve the label modern democracy, a country needs to fulfill some basic requirements – and they need not only be written down in it’s constitution but must be kept up in everyday life by politicians and authorities:

  • Guarantee of basic Human Rights to every individual person vis-à-vis the state and its authorities as well as vis-à-vis any social groups (especially religious institutions) and vis-à-vis other persons.
  • Separation of Powers between the institutions of the state:
  • Government [Executive Power],
  • Parliament [Legislative Power] und
  • Courts of Law [Judicative Power]
  • Freedom of opinion, speech, press and massmedia
  • Religious liberty
  • General and equal right to vote (one person, one vote)Good Governance (focus on public interest and absence of corruption)

यानि :

  • प्रत्येक व्यक्ति को उसके मूलभूत अधिकार दिए जायें |
  • सत्ता का कोई एक केंद्र ना हो उसका विकेंद्रीकरण हो |
  • सभी को अपनी राय रखने और बोलने की आज़ादी हो |
  • सबको अपने धर्म के मुताबिक पूजा करने और अपने ईश को याद करने की आज़ादी हो |
  • सभी को सरकार बनाने में साझीदार बनाया जाये |
  • भ्रष्टाचार मुक्त शाषण और जनता के हित के लिए बेहतर समन्वय बनाया जाये |

अब ये तो हुई ideal democracy और ideal politics की बात ! लेकिन सच में अगर देखिएं तो जितना सुन्दर और लुभावना रूप लोकतंत्र का दीखता है व्यावहारिक रूप में , विशेष कर भारत और पाकिस्तान में इस बेहतर शाषण प्रणाली को राजनीतिक लोगों ने अपने अपने फायदे के अनुसार मजाक बना दिया है ! शाषण के इस सुन्दर रूप को इतना वीभत्स बना दिया गया है कि लोग इस शाशन प्रणाली से ही आजिज़ आने लगे हैं ! हालाँकि ये एक इंसानी प्रवृति है कि जिसके पास जो चीज़ है वो उससे उकता जाता है और फिर कुछ नया सोचने लगता है ! अब ना तो लोग अपने मत के अधिकार का उपयोग करने में गर्व महसूस करते हैं और ना ही मत का उपयोग करते हैं ऐसे में वो सरकार बनाने के लिए होने वाले महान यज्ञ में अपनी आहुति भी नहीं डाल पाते ! इस सब की वज़ह से होता ये है कि संविधान और कानून के तौर पर अनपढ़ लोग इस देश के नीति निर्माता बन जाते हैं और हम फिर यूँ ही लुटे पिटे से महसूस करते हैं जबकि गलती खुद हमने की थी अपने अधिकार का उपयोग ना करके ! इस सबसे होता ये है कि कोई एक परिवार या दो चार परिवार ही इस तंत्र में मज़बूत होते चले जाते हैं और फिर वो जैसे चाहे वैसे इस देश और प्रदेश को हांकने लगते हैं ! हमें शुक्रिया कहना चाहिए अपने संविधान निर्माताओं का जिन्होंने हमें एक ताकत दी है , वोट करने की ताकत ! यही ताकत शाशक को अर्श से फर्श पर ला सकती है और यही ताक़त किसी मजदूर के बच्चे को भी प्रधान मंत्री बना सकती है ! लेकिन ये होगा तब जब हम खुद घर से अपने वोट का प्रयोग करने निकालेंगे !

अगर हम उत्तर प्रदेश के विषय में बात करें तो यहाँ की फिजा धीरे धीरे कसैली होती चाय गई , आज़ादी मिलने के बाद ! आज़ादी के समय भी उत्तर प्रदेश सबसे पिछड़ा था और आज भी है ये अलग बात है की सबसे ज्यादा प्रधान मंत्री इसी राज्य ने भारत को दिया हैं लेकिन इसकी विडम्बना देखिये कि जो आया इसे लूटता ही चला गया ! एक किस्सा याद आता है ” नेहरु जी ने भारत के विभाजन के समय जिन्नाह के कश्मीर मांगने पर कहा कि वो (नेहरु) जिन्नाह को कश्मीर देने को तैयार हैं यदि जिन्ना अपने साथ उत्तर प्रदेश को भी ले जायें ! ” क्योंकि उत्तर प्रदेश उस समय भी इतना ही पिछड़ा हुआ था जितना कि आज !

भारत में राजनीति को एक दिन में ही नहीं सुधारा जा सकता है क्योंकि यहाँ के महारथियों को भगवान ने इतनी अक्ल दी है कि वो हर चीज़ का काट ढूंढ निकालते हैं ! मैं अपने अनुसार भारतीय राजनीति को सुधारने के कुछ उपाय सुझाना चाहता हूँ :

  • चुनाव आयोग को और मज़बूत किया जाये ! इसे किसी भी तरह के सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाये और चुनाव आयोग के किसी भी अधिकारी को सेवा निवृति के कम से कम पांच साल तक किसी भी पार्टी या राजनीतिक दल से जुड़ने की मनाही हो !

  • सत्ता का विकेंद्रीकरण किया जाये और सत्ता को संसद से लेकर पंचायत स्तर तक जवाबदेह बनाया जाये !

जन लोकपाल बिल बनाया जाये और इसे भी किसी भी तरह के सरकार के नियंत्रण से मुक्ति दी जाये |

  • भारत की जांच एजेंसियों को सरकार के नियंत्रण से मुक्ति मिले और उनके अधिकारियों को भी कम से कम पांच साल तक किसी भी राजनीतिक दल से ना जुड़ने की हिदायत दी जाये !

  • किसी भी व्यक्ति को दो बार से ज्यादा विधायक या सांसद ना बनने दिया जाये, जैसा कि और परीक्षाओं में होता है ! और दो बार के बाद उसे चुनाव लड़ने के योग्य ना माना जाये ! इससे ये होगा की लोगों को नये व्यक्तियों में से अपना प्रतिनिधि चुनने की छूट मिलेगी और प्रत्याशियों की संख्या भी कम होगी जिससे सरकार को पैसे की भी बचत हो पायेगी !

  • भारत में पंचायत स्तर से लेकर संसद तक , right to reject यानि प्रत्याशियों को चुनाव के समय नकारने का अधिकार और right to recall यानि चुने गए प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार , के प्रावधान लागू किये जायें !

  • किसी भी जन प्रतिनिधि के ऊपर लगे भ्रष्टाचार या अन्य आरोपों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाये जायें जिससे उनका फैसला जल्दी से जल्दी हो सके और लोकतंत्र में भरोसा बना रह सके !

  • हर पार्टी में आजीवन अध्यक्ष पद पर बने रहने का प्रावधान ख़त्म किया जाये और दलों के बीच में भी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को अपनाया जाए जिससे परिवार वाद की राजनीति पर अंकुश लगाया जा सके !

ये केवल मेरे विचार हैं ! लेकिन मैं ये कहना चाहता हूँ की सरकार तभी झुकती है जब उस पर दवाब डाला जाता है अन्यथा कोई भी अपने पाँव पर खुद ही कुल्हाड़ी नहीं चलाने वाला है ! राजनीति के सुधार हमारे मन और आत्मा के रास्ते से गुजरते हैं ! अगर हम अपनी मात्रभूमि से प्यार करते हैं तो निश्चित रूप से हम ये भी चाहेंगे की ये धरती ना केवल सुरक्षित रहे बल्कि फले फूले भी ! इसके लिए हमें एकजुट और जाती संप्रदाय से ऊपर उठकर निर्णय लेने होंगे और सोचना होगा | भारत के कानून और संविधान का सम्मान भी करना होगा ! अगर हम ये सोच कर बैठे हैं की ये सब सरकार जब करेगी तब कर लेगी तो सच मानिए की कुछ नहीं होने वाला , कुछ भी नहीं क्योंकि राजनीति में सुधार इन नेताओं के राह में रोड़ा ही साबित होंगे और कोई भी नहीं चाहेगा की वो राजनीति का कालिदास बने और भारतीय राजनीति में सुधारों को लागू कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारे !

अंत रामधारी सिंह दिनकर जी की एक कविता से करता हूँ :

समर शेष है , नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं , समय लिखेगा उनका भी अपराध ||

( Not just criminal is responsible for crime . Time will speak for truth .

whoever is neutral , Time will decide his / her fate and role in crime )

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh