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क्या डॉ. मनमोहन सिंह अक्षम प्रधानमंत्री हैं ?

kahi ankahi
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भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सन् 2004 में जब सत्ता संभाली थी , तब भारत में एक उम्मीद की किरण जगी थी | लगता था कि वित्त मंत्री रहते हुए डॉ. सिंह ने जो बेहतर काम किए , वो उन्हें उसी रफ़्तार से आगे बढ़ाएँगे | उन्होने ऐसा किया भी | उन्होने अपने पहले कार्यकाल में अमेरिका से परमाणु संधि के मुद्दे पर वामपंथियों के आगे घुटने ना टेक कर अपनी मजबूती का भी परिचय दिया | उन्होने सन् 2008 की विश्व व्यापी आर्थिक मंदी से भी भारत को मजबूती से निकल दिया , जो उनके अच्छे आर्थिक शास्त्री होने का सबूत देता है | ये सब बेहतर काम डॉ. सिंह ने तब किए जब उन्हें अपने आपको साबित करना था | उनके उपर दबाव भी था , उन्हें परफॉर्म भी करना था जो उन्होने किया भी | अब जब वो अपने आपको साबित कर चुके हैं तब इस कार्यकाल में, जो 2009 से शुरू हुआ है , वो इतना कमज़ोर क्यों नज़र आते हैं ? अपने पहले कार्यकाल में 64 सांसदों वाली वामपंथी पार्टियों के आगे ना झुकने वाले , अपनी सरकार को ताक पर रख देने वाले प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 14 सांसदों की डी. एम. के. पार्टी के सामने क्यों कमज़ोर नज़र आते हैं | क्या उन्हें एक झटके में ही राजा या दयानिधि मारन को अपने मंत्रिमंडल से बाहर नही कर देना चाहिए था ? इससे ना केवल उनकी इज़्ज़त में इज़ाफ़ा होता बल्कि देश की इज़्ज़त और पैसा भी बचता | क्या डॉ. मनमोहन सिंह को पी. चिदंबरम से ये नही कहना चाहिए था कि अभी आप मंत्री मंडल से इस्तीफ़ा देकर अदालत से ‘पवित्र’ होने का प्रमाणपत्रा लेकर आइए , तब आपको वापस जगह दे दी जाएगी | क्या डॉ मनमोहन सिंह को अन्ना हज़ारे के आंदोलन में खुद शामिल होकर जनता को ये संदेश नही देना चाहिए थे कि हाँ ! हम भी देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं | इसके उलट उनकी सरकार और उनके मंत्रियों ने बेकार में ही ये सोचना और साबित करना शुरू कर दिया कि कांग्रेस और सरकार भ्रष्टाचार को इस देश से ख़त्म ही नही करना चाहती ? चिदंबरम को सिर्फ़ कांग्रेस के दबाव की वज़ह से बचाया गया , खैर अभी हिन्दुस्तान में अदालत जिंदा है | चिदंबरम का फ़ैसला अदालत करेगी , और अगर कैसे भी फ़ैसला चिदंबरम के खिलाफ आ गया तो कांग्रेस मुँह दिखाने के लायक नही रह जाएगी | डॉ. मनमोहन सिंह जी परिवार के मुखिया को परिवार के भले के लिए कड़े फ़ैसले भी लेने होते हैं |

हर रोज़ ऐसे ऐसे घोटालों के बारे में पढने और देखने , सुनने को मिलता है जिससे लगता है जैसे दुनिया के सारे भ्रष्टाचारी यहाँ , इसी सरकार में आकर बैठ गए हैं ! जबकि सच में ऐसा नहीं है , यहाँ एंटनी और श्री प्रणव मुखेर्जी जैसे ईमानदार लोग भी बैठे हैं किन्तु सरकार के ऊपर बदनुमा दाफ इतने हैं कि उनकी अच्छाइयों कि कोई बात भी नहीं करता ! सच कहा जाये तो झूठ की दुनिया के आगे सच्चाई और ईमानदारी कही सिर ढके , मुंह के बल पड़ी हुई है ! एक घोटाला ख़त्म नहीं होता तब तक दूसरे -तीसरे की आहट आने लगती है ! मनमोहन सिंह जी ना जाने किस तरह नींद लेते होंगे ? अभी २ग़ का राग पूरा भी नहीं हुआ कि कोयला घोटाला , सेना में भ्रष्टाचार , कैसी कैसी खबरें इस देश को हिलाने को तैयार बैठी हैं और सरकार है कि अन्ना और उनके साथियों पर ही अपना पूरा ध्यान लगाये हुए है !

इस बात में कोई शक नहीं कि डॉ. मनमोहन सिंह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति है लेकिन उनकी ईमानदारी से हमें क्या फायदा ? वो ना तो इस ईमानदारी कि वज़ह से देश को ईमानदार बना रहे हैं और ना ही ईमानदार व्यक्तियों को रक्षा मिल पा रही है , फिर ऐसी ईमानदारी और ऐसी सज्जनता किस काम की ! प्रधानमंत्री को ना केवल मन से मजबूत होना चाहिए बल्कि शारीरिक रूप से भी स्वस्थ होना चाहिए ! एक गार्ड की नौकरी के विज्ञापन में हम देखते हैं कि उम्मेदवार को हष्ट पुष्ट होना चाहिए तो भारत के गार्ड को हस्त पुष्ट नहीं होना चाहिए ? जब सब कुछ लुटता जा रहा हो और आप ईमानदार बने बैठे रहो , ये कहाँ की न्यायप्रियता और ये कैसी व्यवस्था ? डॉ. सिंह के पास पूरा मौका था कि वो इस कार्यकाल में अपने आपको पूरी तरह मजबूत होकर दिखाते मगर इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि डॉ. मनमोहन सिंह भारत के 120 करोड़ लोगों के प्रधानमंत्री नहीं बल्कि 10 जनपथ के प्रधानमंत्री ही नज़र आते हैं !

समर शेष है , नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं , समय लिखेगा उनका भी अपराध
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( Not just criminal is responsible for crime . Time will speak for truth .

whoever is neutral , Time will decide his / her fate and role in crime )

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