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संसद जैसी मजबूत संस्था , मजबूर कैसे हो सकती है ? लेकिन हम यहाँ भूल जाते हैं कि अब वो संसद की बिल्डिंग तो है जो 1950 में संविधान के बाद अस्तित्व में आई होगी लेकिन वो सांसद नहीं दीखते ! अब हर कोई पार्टी लाइन पर बात करता है देश की लाइन पर नहीं ! संसद का इसी तरह से समय नष्ट होता रहा तो क्या अहमियत रह जाएगी इस लोकतंत्र के मंदिर की ? लेकिन जिन्हें ये समझना चाहिए वो न जाने क्यूँ ये समझना ही नहीं चाहते की आज वो जो कर रहे हैं कल उसका बहुत बुरा प्रभाव होने जा रहा है ! आप खुद इसे इस बात से समझ सकते हैं की विधानसभाओं के विषय में अब कोई क्यूँ नहीं बात करता ? क्यूंकि विधानसभा की शोभा बढाने वालों ने उन्हें एक ” ओपेरा हाउस ” बना दिया है ! दिल्ली में बैठे लोगों को ये बात समझनी होगी की कल को संसद का महत्व बना रहे इसके लिए उन्हें संसद की गरिमा का भी ख्याल रखना ही होगा अन्यथा इस मंदिर की कोई पूजा तो क्या खोज खबर लेना भी छोड़ देगा !
अब आरोप तो बहुत हो चुके , आलोचनाएं भी बहुत हो चुकी ! सार्थक क्या है ? उपाय क्या है ?
मित्रवर , कोई भी देश अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होता ! लेकिन उसमें निरंतर सुधार होता रहता है ! बस यही सुधार आवश्यक हैं ! संविधान में लिखी हर बात पत्थर की लकीर जैसी होती है लेकिन समय समय पर उसमें संशोधन भी किये जाते रहे हैं ! आज समय की जरुरत है की एक न्सिस्चित समय सीमा तय की जाए हर किसी सांसद के लिए की उसे इतना समय संसद में गुअजरना ही होगा , उसे तभी भत्ता मिल सकेगा ! और एक निम्न स्तर तक आकर उसके अगले चुनाव में खड़े होने पर , या किसी भी तरह के चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगाई जाए ! हमारे मानिन्यों को ये समझना होगा की वो हमेशा के लिए इस कुर्सी पर नहीं बने रहेंगे , इसलिए संसद की गरिका और उसके महत्व के लिए जरुरी है की उसे ” fruitfull” यानी उपयोगी बनाया जाए ! हमें मिलकर आन्दोलन करना होगा जिससे लोग इस विषय पर अपने आप को जाग्रत कर सकें और संसद के महत्त्व को समझ सकें , अपने वोट और उसकी कीमत को समझ सकें ! आन्दोलन , क्रांति को जन्म देते हैं और वाही क्रांति समाज और देश को सही दिशायें देती हैं
मैंने देखा है , लोग बाबा , महात्माओं के प्रवचन सुनने में लाखों की तादाद में इकठ्ठा होते हैं लेकिन संसद की गरिमा बचाने के लिए जितने आन्दोलन हो रहे हैं या होते रहे हैं उनमें संख्या कम होती है ! मैं इस बात के खिलाफ नहीं हूँ की बाबाओं के प्रवचन सुनाने क्यूँ जाते हैं , जाना चाहिए क्यूंकि वो एक अच्छा काम कर रहे हैं , धर्म और अध्यात्म की बात जीवन को सुखमय बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं किन्तु संसद हमारे देश का मंदिर है , उसकी प्रसगिकता , उसकी गरिमा , उसका महत्व तभी संभव है जब हम उसे जानें , उसे पहिचानें ! मित्रो , ये जीवन सिर्फ एक बार मिलता है ! यहीं आकर हम हिन्दू या मुसलमान बनते हैं , यहीं आकर हम ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य या शुद्र में विभाजित किये जाते हैं , किन्तु देश सबका एक है , संसद सबकी एक है ! आओ , लोकतंत्र के सही अर्थों को पहिचानें और अपना बेशकीमती वोट कभी 1,000 , 2,000 या दारू के भाव में न बेच डालें !
चीमा साब की एक रचना के साथ अपनी बात ख़त्म करना चाहूँगा !
ले मशालें चल पड़े है लोग मेरे गाँव के ,
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के .
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