kahi ankahi
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एक देश हुआ करता था हिंदुस्तान
उसे लिहाफ कर दिया
नेताओं ने अपने मंसूबों की खातिर
उसे १९४७ में आधा यानि हाफ कर दिया
लिहाफ के दोनों ही हिस्सों में
एक आग सी लगी है
इस आग में बेचारी और लाचार
बस जनता ही जली है
ये और बात है कि
उधर का लिहाफ कुछ ज्यादा ही जल रहा है
मगर वहां की आग की तपिश से
ये हिस्सा भी पिघल रहा है
आखिर दोनों ही तो
एक ही लिहाफ के हिस्से हैं
दोनों की संस्कृति एक जैसी
दोनों के एक से ही किस्से हैं
वही आतंकवाद , भ्रष्टाचार और अत्याचार
वही गरीबी, वही लूटमार
इधर भी है , उधर भी
अब क्या हो इसका समाधान
कुछ आप ही कहें श्रीमान
मेरा तो ये कहना है
अब नहीं कुछ सहना है
प्यार से या ताकत से
“उस’ तरफ समझाइये
उधर वाले लिहाफ को भी अब
अपने वाले लिहाफ से मिलाइये
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