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माँ मुझे फिर से जनम दो

kahi ankahi
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इस दुनिया में आये हुए करीब तीस वर्ष हो चुके | बालक से तरुण हुआ , युवा हुआ | वक़्त के साथ प्राथमिकताएं बदलती गईं | पहले जब बच्चा था सिर्फ माँ को ही जाना , माँ को ही पहिचाना | माँ ही सबसे सुन्दर होती थी | ऐसा लगता माँ के सिवा इस दुनिया में और कुछ होता ही नहीं | तरुण हुआ तो पढाई ने ऐसा घेरा कि माँ केवल मुझे पालने वाली ही , मेरे लिए खाना बनाने वाली ही रह गयी | प्राथमिकताएं बदल रही थी | माँ ने पापा के साथ बात कर के इंजीनियरिंग के लिए कहीं दूर भेज दिया , शायद दिल पर पत्थर रखकर | हॉस्टल की जिंदगी ने माँ पता नहीं कहाँ भुला दी | नौकरी मिली , शादी हुई | शादी होती ही है बच्चे पैदा करने के लिए , तो बच्चे भी हो गए | दो का स्लोगन चल रहा है तो दो ही किये | हम दो हमारे दो | माँ अब भी थी दुनिया में | अब मैं कहाँ मिल पता था उससे | माँ ही कभी मेरी खबर लेती , मैं तो खुद को इतना व्यस्त दिखाता रहा कि माँ के पास तक न जाने के बहाने ढूंढता रहा | अब माँ से ज्यादा बीवी खूबसूरत लगने लगी थी , उस से बात करना ज्यादा जरूरी था |
अब जब भी दुखी होता हूँ , बीवी नहीं मेरी माँ मुझे याद आती है | ऐसा नहीं कि बीवी मेरी बात नहीं सुनती , बल्कि मेरा मन होता है कि अपनी हर बात माँ को बताऊँ | में अगर रोऊँ भी तो माँ के आँचल में सिर रखकर रोऊँ , नहीं तो दुनिया को पता चल जायेगा | और ये दुनिया रोते हुए बच्चे को तो चुप करा देती है , रोते हुए इंसान से मज़ा लेती है |
माँ मुझे फिर से बच्चा बना दे , अपनी गोदी में जगह दे मुझको | मुझे नहीं चाहिए ये ऊंची ऊंची अट्टालिकाएं , मुझे नहीं चाहिए ये दुनिया के बनाये पद और ये धन दौलत | माँ बस मुझे तू चाहिए | तेरे जैसा रिश्ता , तेरे जैसा आँचल इस दुनिया में फिर कहीं नहीं मिला | मैं भटक गया था , मैं दुनिया की रौ में बहता चला गया और तुझको भूलता गया |

क्या मुझको माफ़ करेगी ? माँ ! क्या तू मुझे फिर से जनम देगी ?

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