Menu
blogid : 5476 postid : 286

विधवा की प्रार्थना ” (मुनाजात ए बेवा )

kahi ankahi
kahi ankahi
  • 66 Posts
  • 3690 Comments

आज कुछ अलग विषय पर लिखना चाहता था किन्तु समय अभाव और विचार उत्पन्न ना होने की वज़ह से मौलिक लेखन नहीं कर पा रहा हूँ लेकिन इस दरम्यान उर्दू में कुछ बहुत बेहतरीन पढने को मिला तो सोचा , आपके साथ साझा कर लेता हूँ ! आप लोगों ने ” प्रेम रोग ” फिल जरूर देखि होगी जिसमें अभिनेत्री जब विधवा हो जाती है तो कैसी कैसी परम्पराओं को निभाना होता है उसे ! बस इसी विषय पर उर्दू के महान शायर ज़नाब ख्वाजा अल्ताफ हुसैन “हाली ” की नज़्म को आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसका शीर्षक है ” विधवा की प्रार्थना ” (मुनाजात ए बेवा )

तेरे सिवा ए रहम के बानी
कौन सुने ये राम कहानी


एक कहानी हो तो कहूं मैं
एक मुसीबत हो तो सहूँ मैं


गर ससुराल में जाती हूँ मैं
नहस कदम कहलाती हूँ मैं


मायके में जिस वक्त हूँ आती
रो रोकर हूँ सबको रुलाती


सोच में मेरे सारा घर है
मेरे चलन पर सबकी नज़र है


आप को हूँ हर वक्त मिटाती
ना पहनती अच्छा ना हूँ खाती


मेहंदी मैंने लगानी छोड़ी
पट्टी मैंने जमानी छोड़ी


कपडे महीनों में हूँ बदलती
इतर(इत्र) नहीं मैं भूल के मलती


सुरमा नहीं आँखों में लगाती
बाल नहीं बरसों गुन्धवाती


दो दो चाँद नहीं सिर धोती
अठवाड़ों कंघी नहीं होती


आप को याँ तक मैंने मिटाया
पर दुनिया को सब्र ना आया

मायने : बानी -संस्थापक , नहस कदम – अशुभ कदम , दो दो चाँद – दो दो महीना , आप -स्वयं , यां -इतना

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh