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तुम आओ ना….

*काव्य-कल्पना*
*काव्य-कल्पना*
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स्नेह के अश्रु भर दो नैनों में,
ऐसे तो ठुकराओ ना,
इस राह देखते दिवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

तुम आओगी जब लेकर बहारे,
यादों के किस्से होंगे प्यारे प्यारे,
ह्रदय का हर्ष और स्नेह मिलन की,
छा जायेंगे राहों में संग तुम्हारे।

कही नैन मेरे थक कर देखो,
सपनों की नगर में खो जाये ना।

इस राह देखते दिवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

तुमको क्या पता दिवानापन,
बेचैन है कितना मेरा मन,
हँसना तो बस मजबूरी है,
रोना ही तो है सारा जीवन।

एकांत का गीत मै गाऊँ कब तक,
तुम भी आकर संग गाओ ना।

इस राह देखते दिवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

आज फिर वैसी ही रात है,
मानों तुमसे मेरी मुलाकात है,
तुम दूर खड़ी रोती रहती,
कुछ दिल ही दिल की बात है।

राहों में अभी तक तन्हा हूँ,
तुम मेरा साथ निभाओ ना।

इस राह देखते दिवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

छुपा लिया मैने तुमसे,
वो बातें जो तुमसे कहनी है,
दिल ने पूछा दिल से तेरे,
दिल में तेरे मुझे रहनी है।

देकर थोड़ा सा प्यार मुझे,
अपने कल को भूल जाओ ना।

इस राह देखते दिवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

है प्यार नहीं तो ये क्या है,
मेरे दर्द के किस्सों का मंजर,
हर जख्म होगा अब बेगाना,
इक बार जो तुम आओगी अगर।

मै राह तुम्हारी देखते ही,
अपनी राहें सब भूल गया,
मँजिल भी तो अब तुम ही हो,
तेरे इंतजार के सिवा अब और क्या?

अंतिम साँसों की धुन पर,
ये मन बेचारा बुला रहा,
अब तो बस दिल की थमती धड़कन,
को और ना तुम धड़काओ ना।

इस राह देखते दिवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

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